आखिर क्या कारण है ? की एक्जमाने में विश्व की सबसे मजबूत अर्थव्यवस्था वाला देश आज विश्व में चौथा नंबर की अर्थव्यवस्था बनकर रहा गई है। एक ज़माने में सोने की चिड़िया कहलाने वाला देश अर्थव्यवस्था की कमजोर दौर से गुजर रही है।
वैदिक कल से लेकर मुग़ल काल, मुग़ल कल से औपनिवेशिक कल तक कबीर दस ने लिखा है गो-धन, गज-धन, वाजि-धन और रतन-धन खान। जब आवत संतोष-धन, सब धन धूरि समान ॥६॥
कबीर दास जी के इस दोहे में एक गहरा अर्थ निहित है जिसका आचरण वर्तमान युग में नहीं किया जाता। चूँकि मुझे भ्रष्टाचार पर बोलना है तो मैं अब इस बिंदु पर आता हूँ।
"जिसने कर दिया भारतीय
अर्थवस्था को लाचार,
उस रोग का नाम है
भ्रष्टाचार ! भ्रष्टाचार ! भ्रष्टाचार !"
अर्थवस्था को लाचार,
उस रोग का नाम है
भ्रष्टाचार ! भ्रष्टाचार ! भ्रष्टाचार !"
भ्रष्टाचार अर्थात गलत आचरण।
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