वर्तमान युग में भारतीय समाज संतुलित नहीं है। स्त्री और पुरुष के बिच आर्थिक, सामाजिक, शैक्षणिक तथा कई अन्य दृष्टिकोण से अंतार व्याप्त है। जो न केवल राष्ट्र विकास में बाधक है बल्कि एक स्वस्थ और समृद्ध समाज के प्रसार के रूप में रुकावट है।
भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति अच्छी नहीं है। ईश्वर ने महिलाओं और पुरुष को अपनी-अपनी विशेषताओं के साथ उनकी रचना की है, किन्तु हम मनुष्य उनमें कमी निकालते रहते हैं। महिलाओं को अबला समझते है। उन्हें सदियों से इस कदर परदे के अन्दर रखा गया कि उनका न तो सामाजिक विकास हो सका न शैक्षणिक और न ही आर्थिक रूप से महिला आत्मनिर्भर हो सकी। कभी उनकी शारीरिक कमजोरी को आधार मन कर उन्हें समाज में विकसित होने से रोका गया तो कभी इज्जत और शान की खातिर उन्हें शिक्षा के अधिकार से वंचित किया गया।
एक बहुत ही सुन्दर वाक्य है ऐसे ढोंगी पुरुषवादी विचार धारा से ग्रस्त व्यक्ति के लिए जो समाज में व्याप्त स्त्री के प्रति भेदभाव को दर्शाता है। जरा ध्यान से सुने - कहा गया है
"जिन्होंने अपनी बहनों को कभी इज्जत खोने के डर से विद्यालय नहीं भेजा। आज अपनी पत्नी के डिलीवरी के लिए, लेडी डॉक्टर ढूंढ़ रहे है।"
"हम तो रावण और हिटलर में भी कोई न कोई अच्छाई ढूंढ़ लेते हैं।। और ये जालिम जमाना जो राम और महात्मा गाँधी में भी कोई न कोई बुराई ढूंढ लेते हैं।।"
प्रत्येक चीज के दो पहलू होते हैं सकरात्मक और नकरात्मक आवश्कता है हर एक व्यक्ति या वास्तु में अच्छे गुणों को ढूंढ़ कर उसे धारण करने की स्त्री की कोमलता को उसकी कमजोरी नहीं बल्कि उनकी एक विशेषता मानकर गुलाब को फूल की एक पंखुरी की तरह उसे स्वीकार करना चाहिए।
"महिलाओं को मिले भारतीय समाज में पूरा-पूरा सम्मान तभी जाग सकेगा भारत का स्वाभिमान "
भ्रूण हत्या, महिला उत्पीड़न तथा दहेज़ प्रथा हमारे देश की बहुत बरी बुराई है, इसे मिटाने के लिए आओ हम कसम खायें, इसी में समाज की भलाई है।
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