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सच बात पूछती हूं...बताओ ना बाबूजी... | Poem for Father | Most Emotional poem

Poem for Father


सच बात पूछती हूं...बताओ ना बाबूजी...
छुपाओ ना बाबूजी...क्या याद मेरी आती नहीं...
पैदा हुई घर मेरे मातम सा छाया था
पापा तेरे खुश तेरे... मुझे मां ने बताया था...
ले ले के नाम प्यार जताते भी मुझे थे...
आते थे कहीं से भी तो बुलाते भी मुझे थे...
मैं हूं नहीं तो किसको बुलाते हो बाबू जी...
क्या याद मेरी आती नहीं..
हर जिद मेरी पूरी हुई...हर बात मानते
बेटी थी मेरी मगर बेटों से ज्यादा थे जानते
घर में कभी होली कभी दीपावली आई...
संडे भी आई मेरी फ्रॉक भी आई...
अपने लिए  बंडी नहीं लाते थे बाबूजी...
क्या कमाते थे बाबूजी...क्या याद मेरी आती नहीं...
सारी उमर खर्चे में...कमाई में लगा दी..
दादी बीमारी थी तो दवाई में लगा दी...
पढ़ने लगे हम सब तो पढ़ाई में लगा दी...
बाकी बचा वो मेरी सगाई में लगा दी...
अब किसके लिए इतना कमाते हो बाबूजी...
बचाते हो बाबूजी...क्या याद मेरी आती नहीं...
कहते थे मेरा मन कहीं एक पल नहीं लगेगा...
बिटिया विदा हुई तो ये घर... घर नहीं लगेगा...
कपड़े... कभी... गहने...कभी सामान संजोते...
तैयारियां भी करते थे...छुप-छुप के थे रोते...
कर कर के याद अब तो ना रोते हो बाबू जी...
क्या याद मेरी आती नहीं...
कैसी परंपरा है...कैसा विधान है...पापा बता ना कौन का मेरा जहान है...
आधा यहां...आधा वहां जीवन है अधूरा
पीहर मेरा पूरा है ना... ससुराल है पूरा...
क्या आपका भी प्यार अधूरा है बाबूजी...
सच बात पूछती हूं...बताओ ना बाबूजी
क्या याद मेरी आती नहीं....क्या याद मेरी आती नहीं 


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