लक्ष्य को समक्ष रख,
दिन रात परिश्रम कर मनुष्य,विघ्न बाधाओं से तू ,
बिल्कुल नहीं अब डर मनुष्य ।।
है सीने में गर अगन,
कुछ कर गुजरने के लिए,
सोच मत हो जा मगन,
आरजु को पाने के लिए।।
क्या हवा है, क्या फिज़ा है,
तू देख तो कितना मजा है,
पसीने से लथ-पथ होकर,
शीतल जल का अपना मजा है।।
लक्ष्य-विहीन हो कर जीवन,
कुछ और नहीं केवल सज़ा है,
नई उमंग नई तरंग,
जोश-जवानी के संग,
साहस से पूर्ण अंग-अंग,
शत्रु भी देख हो जाये दंग।।
है दम कहां किसी और में,
जो जीत ले मेरी ये जंग।।
अम्बर से ऊँचा लक्ष्य हो,
तुच्छ दिखता विपक्ष हो,
कोई ज़ोर नहीं, कोई तोड़ नहीं,
मजबूत ऐसा पक्ष हो।।
धरा पर अवसरों की,
है कोई कमी नहीं,
पीछे जो हमने खोया,
आँखों में अब नमी नहीं।।
पृथ्वी जो भाष्कर के,
चारों ओर घूमती है,
एकाग्र हो कर सरिता,
सिंधु को चूमती है।।
पिया को देख दुल्हन,
जैसे झूमती है।।
अवसर अनंत है यहाँ,
तू सोच ले जाना कहाँ,
अब मत देख यहाँ-वहाँ,
अर्जुन की भाँति नयन को,
टिका दे लक्ष्य है जहाँ ।।
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