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हे अधिकारी | दिखावे, अहंकार और घमंड पर हिन्दी कविता | Dikhave, ahankar aur ghamand par hindi kavita

हे अधिकारी,दिखावे, अहंकार और घमंड पर हिन्दी कविता



न सभी सरकारी अधिकारियों/कर्मचारियों को समर्पित जो आए दिन आम आदमी को अपनी बत्तमीजी और घमंड से परेशान करते रहते है और उन सभी अच्छे सरकारी सेवकों को साधुवाद, जो आम आदमी के लिए निःस्वार्थ होकर हमेशा मदद का हाथ बढ़ाते है ।



भई, इतना क्यों गुस्साए रहते हो
जब देखो बस तमतमाए रहते हो

चिल्लाते हो बेवजह या फितरतन
आसमाँ सर पर उठाए रहते हो

हो गई थोड़ी कहीं जो ऊँच नीच
कई दिनों तक भन्नाए रहते हो

वरिष्ठों के सामने तो हो मिमियाते
और कनिष्ठों को हड़काए रहते हो

और सामने से दे दे ग़र कोई जवाब 
फिर तो बस बिलबिलाए रहते हो

लोग हंसते हैं और बनाते हैं मज़ाक
इतना क्यों तिलमिलाए रहते हो

किसका भला करता है ये बोलो तो
क्यों ऐसा मिज़ाज़ बनाए रहते हो

या फिर पाले बैठे हो कोई कुंठा
जिससे खुद ही घबराए रहते हो

शांति से होता है काम, होने तो दो
हरदम क्यों हड़कंप मचाए रहते हो

उधार के कपडों सी है ये पद-प्रतिष्ठा
क्यों इस पर इतना इतराए रहते हो

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