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Poetry on life of Chatrapati Sambhaji Maharaj | छत्रपती संभाजी महाराज पर कविता

Poetry on life of Chatrapati Sambhaji Maharaj


अरविन्द पोएट्री
की तरफ से ये कविता
हमारे बहादुर योद्धा
छत्रपती श्री संभाजी महाराज जी के
चरणों में अर्पण..!

झुकाया था
सर मौत ने भी
जिसके सामने

दर्द ने भी
मानी थी
अपनी हार
जिसके सामने

एक ही था
दुनिया में
को शेर शिवा
का छावा

जो धर्म को
बचाने डटा रहा
अधर्म के
सामने

मोत भी काँपती
थर थर
जिसकी हिम्मत
के सामने

दुश्मन भी सर
झुकाते
जिसकी तलवार
के सामने

एक ही था
दुनिया में
को शेर शिवा
का छावा

वो शहंशाह
भी बेबस था
जिसकी जंनून
के सामने

मिट्टी को देश 
की उसने अपने 
खून से भिगोया
था

कतरा कतरा
खून का
उसकि शरीर से
बिखरा था

उसने खून के
रंग ने भी
अपना रंग
बदला था

बिखरा था जो
खून जमीं पर
रंग भी उसका
भगवा था

मुँह में जुबां न
रही
फिर भी
आँखे बोलती
रही

आँखों से खून
निकला
तो काया
चलती रही

साथ छोड़ा जब
उसने भी
तो सिर गर्व से
खड़ा रहा

कट गया वो 
सिर भी
पर दहाड़
गूँजती रही

न जाने कौन
सी
मिट्टी का 
बना था वो

बाप की
विरासत का
सही हकदार
था वो

अपनों के लिए
थोड़ा सा
पागल था वो

पर अपनों की
ही गद्दारी का
शिकार बना था
वो

मौत को
देख उसकी
खुदा भी
रोया था

ली जान जिसने
रसकी
वो भी न रातभर
सोया था

आंसू तो
निकले थे
उसकी भी
आंखों से

न बेटा उसने
ऐसा
अपनी जिंदगी
में पाया था

इतिहास तो
कई
बने है
रनिया में

अपनों के लिये
सभी जीते है
जहाँ मे

बस वो
इतिहास
दिल में ताजा
रखना

जिसने जिदंगी
दिलाई हमें
खुद की शाहदत
मे



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