चाहे अम्बर से राम बुला लो,
चाहे तुम घनश्याम बुला लो,
चाहे खाटूश्याम बुला लो,
चाहे चारों धाम बुला लो,
अंधकार जो घाना हुआ है,
केवल सूरज से ही छटेगा,
बेतुकी खोखली बातो से,
ये भारत देश नहीं बटेगा।
कि जातियों में कूट-कूट बटते रहे तुम,
कारण ये ही था कई सदी तक कहते रहे तुम,
बोलूंगा सत्य महारथी कि तरह,
दिनकर ने लिखी उसी रश्मिरथी कि तरह,
बाते कहूंगा कड़वी कोईए सोक मन ले,
चाहे बुराई आज तीन लोक मान ले,
जन्म हूँ इस धरा पर इसी मर्म के लिए,
मरना पड़े तो मरूँ “देश-धर्म” के लिए।
भूमि कि आर्यावर्त कि विधान नहीं था,
अफ़ग़ान,पाक,बंगला, ईरान नहीं था,
गद्दार कोईए है तो ओ गद्दार हम ही है,
हस्ल जो हुआ है जिम्मेदार हम ही है,
पहले तो टूट-टूट रियासत में टूट गए,
दौर ये आया तो सियासत में बंट गए।
बने मिया मिठू और महान हो गए,
छोटा-सा पद मिला तो तुम सुल्तान हो गए,
तुम्हीं राम-कृष्ण कि तस्वीर हो गए,
कभी जाट-बनिया अहीर हो गए,
ठाकुर कभी-कभी तुम्हीं कुम्हार बने हो,
कुर्मी कछाओ और तुम लौहार बने हो,
जैन अग्रवाल कभी वर्मा हो गए,
ब्राह्मण बने तो कभी विश्वकर्मा हो गए,
स्वयं अपने धर्म से बेमेल हो गए,
कास्त,नाई,पाल और बघेल हो गए,
गरो से गुज़र बने अनुरागी हो गए,
बाल्मीकि दलित और त्यागी हो गए,
शान बढ़ाने को तुम्हीं लोभी बने हो,
क्षत्री पार्थिक और कभी धोबी बने हो,
धर्म कि दिशा में अवरोध हो गए,
लोधी-लोध और क्रॉलोध हो गए
धीरव बने हरिजन बने अनिरुपत बने हो,
पंजाबी बने और तुम्हीं बुध बने हो,
सबके सर पर ताज़ अगर जाती का सजेगा,
मुझको बताओ कि तब देश ये कैसे बचेगा।
खून के प्यासे को हम सुई करते रहे,
मेहनत जिन्होंने कि उन्हें दूद करते रहे,
कह दो कोई शूट प्रतिवाद नहीं है,
मेरे वतन में कोईए जातिवाद नहीं है,
सबसे बड़ा है यही दान कि जिए,
जातियों से उठ कर मतदान कीजिये।
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