बोया बीज बबूल का तो,
फल कहां से पाएंगे?
युद्ध भूमि में उतर गए तो,
शांति कहां से लाएंगे?
वह देखो असंख्य तारों को,
मिलजुल सब ये रहते हैं,
सौर्य मंडल के ग्रहों को देखो,
अपनी राहों में चलते हैं ।
पर्वत कैसे अटल खड़े हैं,
नदिया अपनी गति में बहती,
रंग बिरंगी कलियों को देखो,
क्या वो खुशबू औरों से लेती ?
शांति क्या कुदरत से सीखे,
प्यार - मोहब्बत जग में सींचे,
भेद - भाव ना जात धर्म का,
ना कोई ऊपर ना कोई नीचे ।
सहन कर हम समझ गए हैं,
कुदरत का वरदान मिला है
कुदरत की अब रक्षा करना,
मानव का ये काम भला है ।
हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई,
हम सारे हैं भाई भाई
रहें प्रेम व एकता संग हम,
कभी ना हो फिर अपनी लड़ाई
शांति अहिंसा पथ पर चलते
कभी किसी को हम ना छलते
वेर किसी से ना कोई अपना,
नेकी की राहों पर चलते।
0 Comments