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ना नर में कोई राम बचा ना नारी में कोई सीता है | Na Nar Me Koi Ram Bacha Nari Main Nahi Koi Sita Hai

Na Nar Me Koi Ram Bacha Nari Main Nahi Koi Sita Hai


ना नर में कोई राम बचा, न नारी में कोई सीता है ! 
ना धरा बचाने के खातिर, विष कोई शंकर पीता है !!

ना श्रीकृष्ण सा धर्म-अधर्म का, किसी में ज्ञान बचा है!
ना हरिश्चंद्र सा सत्य, किसी के अंदर रचा बसा है !!

न गौतम बुद्ध सा धैर्य बचा, न नानक जी सा परम त्याग !
बस नाच रही है नर के भीतर प्रतिशोध की कुटिल आग !!

फिर बोलो की उस स्वर्णिम युग का, क्या अंश बाकि तुम में !
की किस धुन में रम कर फुले नहीं समाते हो, तुम स्वयं को श्रेष्ठ बताते हो...

तुम भीष्म पितामह की भांति, अपने जिद पर ही अड़े रहे !
तुम शकुनि के षणयंत्रो से, घृणित रहे, तुम दंग रहे, तुम कर्ण के जैसे भी होकर, दुर्योधन दल के संग रहे !!

एक दुर्योधन फिर, सत्ता के लिए युद्ध में जाता है !
कुछ धर्मांधो के अन्दर फिर थोड़ा धर्म जगाता है !!

फिर धर्म की चीलम में नफ़रत की चिंगारी से आग लगाकर!
चरस की धुँआ फुक-फुक कर, मतवाले होते जाते है, तुम स्वयं को श्रेष्ठ बताते हो ...

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