माटी के नीचे गहरे में
एक बीज मैंने बोया था
उसी बीज में गहरी निद्रा
में नन्हा पौधा सोया था।
पौधा समझ रहा था सारी
दुनिया में है सिर्फ़ अँधेरा
क्योंकि अभी तक उसने देखा
कभी नहीं था स्वर्ण सवेरा ।
टप टप गिरकर बूँदों ने
तब उसको जा स्वयं जगाया
कहा- उठो, आँखें खोलो
देखो दुनिया की अद्भुत माया ।
उत्तर गगन से नन्ही किरणों
ने उसको आ स्वयं जगाया
कहा- उठो, आँखें खोलो
देखो दुनिया की अद्भुत माया ।
सर सर करती हुई
हवा ने दे आवाज उसे जगाया
कहा- उठो, आँखें खोलो
देखो दुनिया की अद्भुत माया ।
कलकल करती सरिता की
नन्ही लहरों ने उसे जगाया
कहा- उठो, आँखें खोलो
देखो दुनिया की अद्भुत माया ।।
सुन इन सबकी आवाजें, ली
पौधे ने मोठी अँगड़ाई,
आँख खोल देखा तो सचमुच
दुनिया अद्भुत दो दिखलाई।
नील गगन, मृदु मंद पवन, रवि
उज्ज्वल, शीतल चाँद चाँदनी
झलमल तारागण हिम के कण
सरिता कल कल कल निनादिनी
खगकुल कलरव तरु का वैभव
खिलते सुंदर सुमन सुहाने
प्रात सुनहरे साँझ सुनहरी
हरी घास पर लुटे खजाने ।
अब तो उसका रहा खुशी का
और हर्ष का नहीं ठिकाना
देख चकित रह गया झूमता
दुनिया का वह दृश्य सुहाना ।
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