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दीपावली पर आए नहीं क्यों पापा अबकी बार | Deepawali Pe Kyun Na Aye Papa Abki Baar | अनामिका अंबर

दीपावली पर आए नहीं क्यों पापा अबकी बार | Deepawali Pe Kyun Na Aye Papa Abki Baar | अनामिका अंबर


"बिखरकर सौर्य की खुशबू,
चमन को चुम लेती है,
जवाँ हसरत तिरंगे की,
गगन को चुम लेती है। 

सिपाही जब निकलता है,
वतन पर जान देने को,
वतन की धूल उड़-उड़ कर,
बदन को चुम लेती है।"

चारों तरफ उजाला लेकिन अँधेरी रात थी,
जब वो हुआ सहीद उन दिनों की बात थी,
आँगन में बैठा बेटा माँ से पूछे बार-बार,
दीपावली पर आए नहीं क्यों पापा अबकी बार। 

माँ क्यों नहीं तूने आज बिंदियाँ लगाई है?
है दोनों हाथ खली न मेहंदी रचाई है?
बिछिया भी नहीं पाँव में बिखरे से बाल है,
लगाती थी कितनी प्यारी अब कैसा हाल है?
कुमकुम के बिना सुना लगता है ये श्रृंगार,
दीपावली पर आए नहीं क्यों पापा अबकी बार।

बच्चा बहार खेलने जाता है और लौट कर शिकायत करता है....

किसी के पापा उस को नए कपड़े लाएँ है,
मिठाइयाँ और साथ में पटाखे लाएँ है,
ओ भी तो नए जूते खेलने आया,
पापा-पापा कहके सबने मुझको चिढ़ाया,
अब तो बता दो क्यों सुना है आँगन-घर-द्वार?
दीपावली पर आए नहीं क्यों पापा अबकी बार।

दो दिन हुए तूने कहानी न सुनाई,
हर बार की तरह न तूने खीर बनाई,
आने दो पापा से मैं सारी बात कहूँगा,
तुम से न बोलूँगा न तुम्हारी मैं सुनुँगा,
ऐसा क्या हुआ जो बताने से है इंकार,
दीपावली पर आए नहीं क्यों पापा अबकी बार।

विडंबना देखिये....
पूछ ही रहा था बेटा जिस पिता के लिए,
जुड़ने लगी थी लकडियाँ उसकी चिता के लिए,
पूछते-पूछते वह हो गया निराश,
जिस वक्त आंगन में आई उसके पिता की लाश।

वो आठ साल का बेटा तब अपनी माँ से कहता है....

मत हो उदास माँ मुझे जवाब मिल गया,
मकसद मिला जीने का ख्वाब मिल गया,
पापा का जो काम रह गया है अधुरा,
लड़ कर के देश के लिए करूँगा मैं पूरा,
आशीर्वाद दो माँ काम पूरा हो इस बार,
दीपावली पर आए नहीं क्यों पापा अबकी बार। 

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