सबसे पहले मंच पर जाएं और सभी को प्रणाम करें और अपना भाषण शुरू करें
जो भरा नहीं है भावों से , बहती जिसमें रसधार नहीं।
वह हृदय नहीं है पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।।
परम आदरणीय प्राचार्या मैम, विद्वान और बच्चों को स्नेह करने वाले मेरे अध्यापकगण, हमारा हौसला बढ़ाने आए सम्मानित अभिभावकगण , मेरे छोटे बड़े भाई बहनों तथा यहां मौजूद सभी सम्मानितों को मेरा नमस्कार और स्वतन्त्र दिवस की आप सभी को बहुत सारी शुभकामनाएं....
यद्यपि हिंदी में यह मेरा पहला भाषण है , मैं तमिल मातृभाषी हूँ, अतः हो सकता है कि आज के मेरे वक्तव्य में कुछ कमियां रह जाएं तो कृपया क्षमा करके सार ग्रहण करने की कृपा करें... मेरा भाव ग्रहण करें कृपया...
जैसा कि आप जानते हैं कि आज हम सब यहां आज स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर एकत्रित हुए हैं।
आजादी... तीन शब्दों से मिलकर बना है। इसी आजादी को पाने के लिए भारत ने कई वर्षों तक अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी।
भारत की स्वतंत्रता की यात्रा अपार बलिदान, साहस और एकता से भरी हुई है। 1857 के विद्रोह से लेकर भारत छोड़ो आंदोलन तक, हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने हमारी स्वतंत्रता के लिए कई चुनौतियों का सामना किया।
स्वतंत्रता दिवस एक ऐसा दिन है जो हमें स्वतंत्र और सुरक्षित महसूस कराता है। यह हमें हमारे महान नेताओं की प्रेरक यात्रा, निरंतर संघर्षशील प्रयासों और बलिदान की याद दिलाता है।
भारत की आजादी के लिए स्वतंत्रता संग्राम संघर्ष लंबा चला। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में सिर्फ व्यापार करने आई थी, लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने भारत के संसाधनों पर कब्जा कर लिया और देश को उपनिवेश बना लिया।
कई सालों के उत्पीड़न और गुलामी के बाद कुछ लोग ब्रिटिशों द्वारा किए गए अन्याय के खिलाफ लड़ने को तैयार हुए।
देश की आजादी के लिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) ने एक संगठन बनाया। यह राजनीतिक संवाद के लिए एक मंच बन गया। लेकिन आंदोलन को असली गति तब मिली जब महात्मा गांधी भारत आए।
'शांतिपूर्ण विरोध' की अवधारणा के माध्यम से महात्मा गांधी ने भारत को असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन दिया। गांधीजी के इन आंदोलनों में लोग बड़े पैमाने पर शामिल होने लगे।
इसी दौरान द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हो गया। ब्रिटिश नियंत्रण कमजोर होने के कारण, स्वतंत्रता की मांग तेज हो गई। विभिन्न स्वतंत्रता सेनानियों के प्रयासों के कारण अंततः अंग्रेजों को हार माननी पड़ी।
काफी लंबे संघर्ष के बाद भारत को अंग्रेजों से आजादी मिली। 15 अगस्त 1947 को भारत को एक स्वतंत्र राष्ट्र घोषित किया गया। भारत की आजादी के लिए मंगल पांडे, नेताजी सुभाषचंद्र बोस और शहीद भगत सिंह समेत अनेक स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने प्राणों की आहुति दी है
और अब हमारा कर्त्तव्य है कि न केवल हम इस आजादी को सहेजकर रखें बल्कि नित नए नवाचार, आविष्कार, उपलब्धियां हमारे देश में बढ़ती रहें... हम फिर से विश्वगुरु बनें और इसके लिए हमें विद्यालयों में विश्वविद्यार्थी तैयार करने होंगे... प्रत्येक को अपना कर्त्तव्य ईमानदारी से करना ही होगा, तभी हम खुशहाली के शिखरों पर होंगे...
देश तेज गति से उन्नति कर रहा है और इसमें निश्चित ही हम विद्यार्थियों का योगदान , विशेष योगदान रहने वाला है... सभी विद्यार्थियों की तरफ से मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ
इन पंक्तियों के साथ वाणी को विराम देता हूँ....
चाह नहीं मैं सुरबाला के,
गहनों में गूँथा जाऊँ।
चाह नहीं प्रेंमी माला में,
बिंध प्यारी को ललचाऊँ।
चाह नहीं सम्राटों के शव,
पर, हे हरि डाला जाऊँ।
चाह नहीं, देवों के सिर पर,
चढ़ूँ ,भाग्य पर इठलाऊँ।
मुझे तोड़ लेना वनमाली,
उस पथ पर तुम देना फेंक।
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने,
जिस पथ जाएँ वीर अनेक
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने,
जिस पथ जाएँ वीर अनेक
जय हिंद
जय भारत
0 Comments