रावण शिव का परम भक्त था
बहुत बड़ा था ज्ञानी
दस सिर बीस भुजाओं वाला
था राजा अभिमानी
नहीं किसी की वह सुनताथा,
करता था मनमानी
औरों को पीड़ा देने की
आदत रही पुरानी
एक बार धारण कर उसने
तन पर साधु- निशानी,
छल से सीता को हरने की
हरकत की बचकानी।
पर- नारी का हरण न अच्छा
कह कह हारी रानी
भाई ने भी समझाया तो
लात पड़ी थी खानी।
जान बूझ कर बुरे काम की
जिसने मन में ठानी,
शिवी भी सोचा ऐसे पर
अबचादया दिखानी।
नष्ट हुआ सारा ही कुनबा
लंका पड़ी गवानी,
मरा राम के हाथों रावण
होती खत्म कहानी।
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