सोच को बदलो तो सितारे बदल जाते हैं
नजर को बदलो तो नजारे बदल जाते हैं
किस्तियां बदलने को कौन कहता है यारों
दिशाएं बदलो तो किनारे बदल जाते हैं
सोच बदलते ही अंतर्मन में युद्ध ठन जाता है
रत्नाकर जैसा डाकू भी महर्षि वाल्मीकि बन जाता है
जिसके जीवन-पथ पर चारों ओर अंधेरा था
नई डकैती के साथ नए पाप का सवेरा था
पाप-पुण्य में मानता था जो परिवार का हिस्सा
आकर नारद ने दूर किया उसके भ्रम का किस्सा
रत्नाकर का प्रश्न-मेरे पाप का साथी कौन है?
ना में सिर हिला सबका तो लगा सारी सृष्टि मौन है!
जब आदमी को अपनी गलती का आभास हो जाता है
तब वह नई सोच के साथ नया करने को तन जाता है
सोच बदलते ही अंतर्मन में युद्ध ठन जाता है
रत्नाकर जैसा डाकू भी महर्षि वाल्मीकि बन जाता है
जब संकल्प के साथ कोई जीवन में बढ़ जाता है
तब उसके जीवन से अंधकार घट जाता है
ज्ञान की रीशनी से जीवन उसका भर जाता है
अपनी मेहनत के दम से जग को रोशन कर जाता है
जो रत्नाकर जंगल में डाकु बनकर जीता था
न जाने रोज कितने गरीबों का खून पीता था
वही रत्नाकर रामायण जैसा महाकाव्य लिखकर
संसार की नजरों में भगवान वाल्मीकि बन जाता है
सोच बदलते ही अंतर्मन में युद्ध ठन जाता है
रत्नाकर जैसा डाकू भी महर्षि वाल्मीकि बन जाता है
क्या सिर्फ पानी और पसीने में बड़ा अंतर है
एक पत्थर और एक नगीने में बड़ा अंतर है
मुर्दा घड़ियों की तरह उम्र बिताने वालों
सांस लेने और जीने में बड़ा अंतर है
जब अंधकार से लड़ने का
कोई संकल्प कर लेता है
एक अकेला जुगनू ही
सब अंधकार हर लेता है।
सकारात्मक सोच से ही
जीवन सफलता प्राप्त हो सकती
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