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मजदूर दिवस [श्रमिक दिवस] पर कविता | Mazdoor Diwas Kavita | Poem on Labour Day Hindi




जो दिन में कमाता हूँ,⁣
वही शाम को खाता हूँ।⁣
मिट्टी को पहनता,⁣
धूप से नहाता हूँ।⁣
गश्ती-फावड़ा, हथौड़ा-छैनी,⁣
जो जरूरत बन जाता हूँ।⁣
परेशानियों से रोज,⁣
में हाथ मिलाता हूँ।⁣
थक जाने के बाद भी,⁣
थका नहीं बताता हूँ।⁣
मौसम कोई भी हो,⁣
आसमां ओढ़,सो जाता हूँ।⁣
चूल्हे से भी ज्यादा,⁣
खुद को में जलाता हूँ।⁣
कोई मेरे पास नहीं आता,⁣
भूत नहीं,भूख से डराता हूँ।⁣
पसीना डालकर,⁣
ख्वाबों को उगाता हूँ।⁣
ख्वाब पूरे नहीं होते,⁣
और में जग जाता हूँ।⁣
मुझसे भूख भी डर जाती,⁣
जब मे पानी को खाता हूँ।⁣
कल वक्त बदलेगा,⁣
यही गीत गुनगुनाता हूँ।⁣
खैर छोड़ो,अपनी नज्म सुन,⁣
मैं भी कपकपाता हूँ।⁣
मैं कौन हू? इंसान, नहीं।⁣
मैं तो मज़दूर कहलाता हूँ।⁣

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