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हिंद दी चादर पर कविता | गुरु तेग बहादुर जी पर कविता | Poem On Hind Di Chaadar | Poem On Guru Tegh Bahadur

 
हिंद दी चादर पर कविता,गुरु तेग बहादुर जी पर कविता,Poem On Hind Di Chaadar,Poem On Guru Tegh Bahadur



ये कहानी बड़ी पुरानी है 

ये वीरो वाली वाणी है। 

ये शीश धरा पर धरा नहीं

शीश कटा पर झुका नहीं ।


ये गुरु तेग़ बहादुर का धर्म मान था

सांस्कृतिक विरासत के लिए दिया बलिदान था


जब मुगलों ने अत्याचार किए 

धर्म परिवर्तन के प्रहार किए

फिर भी आँस उन्होने बहाए नही 

तेग़ बहादुर कायर कहलाए नही।


जब औरंगजेब मिलने आया था 

इस्लाम धर्म कबूल कराने का फरमान लाया था 

वो भी सिख सपूत थे

वो शीरा कटा सकते थे, लेकिन केश कटा नहीं सकते थे।


ये शीश धरा पर धरा नहीं

शीश कटा पर झुका नहीं ।


शीरा कटा उन्होने अपना धर्म बचाया था 

वही महान पुरुष तेग़ बहादुर कहलाया था।


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