रे साधु एही नदी के तीर
हमने देखा बहता नीर
भरा कटोरा जगत का त्यागा
चल गया मस्त फ़क़ीर रे साधु
एही नदी के तीर
हमने देखा बहता नीर
काली घटा घनघोर को काटे
निकला भोर औघड़
खाके मिट्टी ले गया मुक्ति
बिन हल्ला बिन शोर
औघड़ को कोई बाँध न पाए
नहीं बानी जंजीर रे साधु
एही नदी के तीर
हमने देखा बहता नीर
मन का खजाना माया टूटे
बैठा कोई मद्दारी
ठग के हाथ में ठौर के चाभि
चोर की चौकी दारी
मेसे जगत को कुनक चलारे
औघड़ को नहीं पीर रे साधु
एही नदी के तीर
हमने देखा बहता नीर
भरा कटोरा जगत का त्यागा
चल गया मस्त फ़क़ीर रे साधु
एही नदी के तीर
हमने देखा बहता नीर
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