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धीरे से खाँस लेता हूँ मैं | Air pollution - Poetry on Delhi, Punjab, North India Bad Air Quality | Smog



जब जब दोस्त हंस-हंसकर
मुंह पर धुआं उड़ा देते हैं,
लो फ्लोर हो या सिटी बस
गाड़ी बीच में खड़ा कर
फिर काला धुआं उड़ा देते हैं।

वह पुक-पुक करती टू व्हीलर मुगालय 
हरे धनिए के साथ थ्री व्हीलर 
बिन बात दम घुटा देते हैं
अब डरता नहीं हूँ। 

बस ऐसी बातों पर धीरे से खाँस लेता हूँ मैं

मैं आजकल रुमाल हेलमेट के नीचे ही
नहीं मुंह पर भी लगाने लगा हूँ 
बड़ी बीमारी ना हो जाए इसलिए 
डॉक्टर के यहां चक्कर लगाने लगा हूँ। 

खांस के पेट पर छाती पसलियों में अब दर्द है
यहां काला धुआं उड़ा कर हर आदमी खुद को कहता मर्द है
मर्दानगी भी तुम्हारी क्लिनिक में नजर आती है
बस तुम लोग की हर आदत देख मुझे खांसी आ जाती है। 

खांसते-खांसते पराली और कभी पटाखे दिमाग में घूम जाते हैं
हर बात पर इंश्योरेंस अब हम कराते हैं
दोष किसी को अब देना नहीं चाहता 
बस 3 से 4 महीने कुछ समझ नहीं आता। 

मुखोटे वाले समाज में मांस लगाकर फिरता हूँ
मैं सहमत हूँ अपनी और खुद की हरकतों से 
इसलिए खांस के भी नहीं डरता हूँ।


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