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जिम्मेदारियों का बोझ परिवार पे पड़ा तो | Jimmedariyon Ke Bojh Pariwar Pe Pada To | कविता तिवारी [Kavita Tiwari]




जिम्मेदारियों का बोझ परिवार पे पड़ा तो,
ऑटो, रिक्शा, ट्रेन को चलाने लगी बेटियाँ
साहस के साथ, अंतरिक्ष तक भेद डाला,
सुना है वायुयान भी उड़ाने लगी बेटियाँ  ।। 

और कितने उदाहरण ढूँढ कर लाऊं,
हर क्षेत्र शक्ति आजमाने लगी बेटियाँ
वीर की सहादत पर, अर्थी को कन्धा देके, 
अब शम्शान तक भी जाने लगी बेटियाँ ।। 

घर में बंटा के हाथ, रहती हैं माँ के साथ
पिता की समस्त बाधा हरती है बेटियाँ
कटु वाक्य बोलने से पूर्व सोचती है खूब
मन में सहमती है, डरती है बेटियाँ ।। 

बेटे हो कुदंड भले, आपका दुखा दे दिल 
कष्ट सह के भी धैर्य धरती हैं बेटियाँ
प्रश्न ये चलनशील सबके लिए है आज ,
नित्य प्रति कोख में क्यों मरती है बेटियाँ ।। 

ललिता, विशाखा, राधा रानी बेटी होती नहीं 
यशोदा दुलारे नन्द नंदन नचाता कौन ?
अनुसुइया जैसी बेटी, तप्साधिका न होती 
पालने में ब्रह्मा, विष्णु, रूद्र को झुलाता कौन ?

जनता जनार्दन बताएगी एक बात आज,
सावित्री न होती सत्यवान को बचाता कौन ?
सब कुछ होता, पर एक बात सोच लेना 
कविता न होती, तो यह कविता सुनाता कौन ?



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