मैं मजदूर हूँ
किस्मत से मजबूर हूँ |
सपनों के आसमान में जीता हूँ,
उम्मीदों के आंगन को सिंचता हूँ |
दो वक्त की रोटी खानें के लिए,
अपने स्वाभिमान को नहीं बेचता हूँ |
तन को ढंकने के लिए
फटा पुराना लिबास है |
कंधों पर जिम्मेदारी है,
जिसका मुझे एहसास है |
खुला आकाश है छत मेरा
बिछौना मेरी धरती है |
घास फूस के झोपड़ी में
सिमटी अपनी हस्ती है |
गुजर रहा जीवन अभावों में,
जो दिख रहा प्रत्यक्ष है |
आत्मसंतोष ही मेरे
जीवन का लक्ष्य है |
गरीबी और लाचारी से जूझ,
जूझ कर हँसना भूल चुका हूँ |
अनगिनत तनावों से लदा हुआ,
आँसू पीकर मजबूत बना हूँ |
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1 Comments
Very much poem 😍🥰☺
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