भारतीय इतिहास में महाराणा प्रताप और शक्ति सिंह के मध्य हुए युद्ध और अंत में भाइयों के प्रेमपूर्वक मिलन की कथा जनमानस के लिए प्रेरणादायी है। इसी प्रसंग को अपनी कविता के माध्यम से आप सबके साथ साझा कर रहा हूँ, कविता आप तक पहुँचे तो आशीष दीजिएगा।
एक जननी एक करनी फिर विभाजन क्यों हुआ?
मन एक है मत एक है फिर मतभेद कैसे होगया?
भाइयों के प्रेम में विक्छेद कैसे होगया?
एक के मन में कुटिलता एक के मन में सरलता,
एक के मन में कठिनता एक के मन में विरलता,
तो इस धरा पर अभी जो बन रही जो रीत थी,
प्रताप में थी देश की शक्ति में सिंहासनो की प्रीत थी,
मेवाड़ की धरती को छोरा मात्र के बंधन को तोरा,
वंश के दीपक ने जाकर बैरियों से हाथ जोड़ा,
तो प्रसाद में अवसाद का स्वर सुनाई दे रहा है,
अली ही कोमल कली का बैरि दिखाई दे रहा है।
विश्व में पर्तिसोध करना थोड़ा सा भी पाप नहीं है,
दुःख आ रहा उम्र में ये तनिक भी अभिशाप नहीं है,
रास्तें में साथ छोड़े प्रेम का परिमाप नहीं है,
प्रताप में शक्ति है पर शक्ति में प्रताप नहीं,
सब वीर तब एक दूसरे के खून के प्यासे बने,
धनुष की हर डोर पर तीर मनो तने,
अस्व पर आरूढ़ राणा कर रहे है कल्पना,
युद्ध में भी चल रही है बंधुता की भावना,
जननी के दो दक्षुओ में नीर भरने जा रहा हूँ,
आज में अपने भाई का खून करने जा रहा हूँ,
अपने मन मे जानता हूँ महाभारत सार को,
मे निमंत्रण नहीं दूंगा कृष्ण के अवतार को।
जानता हूँ अंत तह निष्कर्ष यही आयेगा,
कायर कहेगा विश्व उसे जो युद्ध नहीं कर पायेगा।।
माँ के बारे मे वो सोचते हैं
की क्षत्राणी है वो राज की रणनीतियों को जानती है।
मात्र भू के बेरीयो को माँ भी बेरी मानती है।
तो विजयी श्री के बाद रण मे क्षत्रु बचने ना दूँगा,
अपनी माँ के दुध को मे कभी लजने ना दूँगा। २
कल्पना से निकल राणा फिर देखते रणक्षेत्र को,
फिर निहारा क्रोध से रक्तीम हुए हर नेत्र को,
धरा के दुलार का अँगार मन मे भर चुका था,
घटीयो मे युद्ध की वो घोषणा भी कर चुका था,
सब विर तब एक दुसरे के खुन के प्यासे बने,
धनुष की हर डोर पर तिर भी मानो तने।
इस वेग से शोणित बहाके जो बहे मंदाकिनी,
प्रतिपल वहाँ पर घट रही थी क्षत्रुओं की वाहिनी,
पराक्रम से मुगल दल के दाँत खट्टे पड़ रहे थे,
ओर बिन मुँड के क्षत्रिय तलवार लेकर लड़ रहे थे।।
तब दुर्योग से राणा का पराक्रम वहीं पर खो गया था,
दुर्योग से वो अस्व चेतक धराशाही हो गया था,
धराशाही देख उसको दीर्घार्थी बहने लगी,
उस अनुज की भावना तब वहाँ क्या कहने लगी,
शक्ति ने जब देखा प्रताप के संताप को,
नापना था कठिन उसके स्नेह के परिमाप को,
अस्व लेकर दूसरा वो जा रहा मैदान से,
राणा ने छोड़ी रणभूमि बड़े स्वाभिमान से,
इतिहास ने बोला राणा हार कर ही जा रहा था,
भाई का सम्मान पाकर विजय होकर ही आ रहा था।।
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Ashok charan ji ki kavita padhkar aanad aagya, Thanku Arvind ji
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