गुरुः ब्रह्मा गुरुः विष्णुः, गुरुः देवो महेश्वरा ।
गुरुः साक्षात परब्रह्मा, तस्मै श्री गुरुवे नमः ॥
कोई शिल्पकार मानो
पत्थर को देता आकार,
कोई कच्ची मिट्टी तपाकर
मिटाता हो विकार
भाग्य विधाता कहूं तुम्हें
या भाग्य रचयिता
ज्ञान का अविरल स्रोत ...
जिसमें हो बहता !
जो निःस्वार्थ पथ दिखलाता
किसी को बनाने में
जो स्वयं मिट जाता ।
वो ऐसा ज्ञान का भंडार है
जिसपर हर निष्ठावान ...
का अधिकार है।
जहां गुरु रूप प्रकाश
विद्यमान हो,
वहां कैसे फिर
अज्ञानता का अंधकार हो
ब्रम्हा, विष्णु, महेश
का प्रारूप है,
वह गुरु धरती पर
हमें देव स्वरूप है ।
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😮😮😮😮
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