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कितनी दुनिया देखी है? | Kitni Duniya Dekhi Hai? | Kitni Duniya Dekhi Hai Lyrics By Shubham Shyam

कितनी दुनिया देखी है? | Kitni Duniya Dekhi Hai Lyrics By Shubham Shyam



ज़माने में मोहब्बत के बोहोत से रूप हैं लेकिन,
जो नानी में नाती में पनपता है मोहब्बत है,
वो छुट्टी होते गर्मी की, नानी घर काले जाना,
जो नाती जेक नानी से लिपटता है मोहब्बत है,
गुज़रता वक़्त फिर ये प्रेम एक नए रूप में ढलकर,
उलझता है फिर ये नानी से कई बहसों में फिर अक्सर,
इन्ही बहसों में फास नानी फ़साने खोल देती है,
इक्कठा है ज़हन में वो खजाने खोल देती है,
वैसी ही एक बहस चली थी नानी और मुझमे एक दिन,
की किसकी आँखों ने दुनिया ज्यादा देखा है?
मने हसकर बोल दिया रहने दो नानी,
जीवन भर बस गांव देखा तो क्या देखा,
नानी की आँखे इतराई चुप हो गई हँसकर,
मैं उलझकर सोच रहा हूँ इसी भाव में फ़सकर,
सोच रहा हूँ क्या सोचा होगा नानी ने मन में,
देख सकीय बस एक गांव ही अपने इस जीवन मैं,
नानी छिटक गई मुझसे जैसे पत्ते साखो से,
पूछ पड़ी कितनी दुनिया देखी नन्ही आँखों से?

मैं फिर बोहोत अकड़ कर बोला - शहर शहर घूमा हूँ, 
किस्म किस्म की  चीजे खाई, 
पहर पहर झूमा हूँ, 
लहार समंदर जंगल देखे, 
अम्बर को रातो मैं, 
पर्वत देखे झरने देखे बर्फ गिरी हाथो मैं, 
मैंने पत्थर पर उतरे इंसानो के नकाशी देखि, 
कान्हा का वृन्दावन देखा, 
महादेव की कशी देखी, 
नानी तुमने धरती से आकाश निहारा है जीभर,
नानी तुमने धरती से आकाश निहारा है जीभर, 
मैंने धरती को धरती को देखा है उस अम्बर के ऊपर चढ़कर,

नानी के चेहरे के ऊपर वही एक भाव अभी तक तहरा था,
पर उनकी आँखों में कुछ तो था जो बोहोत ही गहरा था,
नानी बाहर देख रही थी और कहा धीरे से 
पत्थर की तुलना करता है बेटा तू हीरे से,
अच्छा है अच्छा लगता है अच्छी चीज़े देखो तुम, 
पर जो दिखती है दुनिया उतनी है ये न सोचो तुम 
दुनिया बदल रही है बेटा, आँखों ने बदलाव जिया है,
मुठी से यु रेत फिसलते जाने का वो भाव जिया है,
मत कर तुलना अपनी पर्याटन का मेरे अनुभव से,
थक गई है आँखे दुनिया के दुनियावी वैभव से,
याद है तुझको अपने आँगन मैं गौरैया रहती थी,
दिनभर चहक चहक के जाने क्या ही हमसे कहती थी,
आवो हवा में जाने क्या ही हुआ अचानक, 
किसी के घर अब नहीं दिखती गौरैय। 
तुझे पता है पहले मौसम 6 होते थे,
गर्मी, वर्षा, शिशु, सरद, हेमंत, वसंत 
कभी कभी गर्मी में बारिश होती है कभी कभी सूखा पड़ता बरसातों मैं,
देख न पहले कृष्णा जी के जन्मदिन पर कितनी बारिश होती थी उन रातो मैं,
पहले तो चट से ही सर्दी पड़ती थी,
अब तो एक दो हफ्ते ही सर्दी पड़ती है,
मैंने देखा बे-मौसम बरसातों मैं खड़ी फसल बर्बाद होती है रातो मैं,
बढ़ती गर्मी धरती खातिर कहर हो गई,
मैंने देखा नदी सिमट के नहर हो गई। 

नदिया दूर हुई तो उत्सव खोता है,
अब तो बेटा छत पर ही छठ होता है,
अब तक बाहर देख रही थी, किस्सा कहती जाती थी,
पहली बार पलट कर नानी ने मेरा चेहरा देखा,
नानी ने मेरी आँखों में खौफ उतरते भी देखा,
की देखो बेटा - “ऐसा नहीं की सबकुछ ऐसे स्वर्ग-स्वर्ग था पहले”
ऐसा नहीं की सबकुछ ऐसे स्वर्ग-स्वर्ग सा था पहले,
और तुम्हारी पीढ़ी ने ही नर्क मचा के रखा हो,
पहले वालो में बेटा कुछ काम तमाशा नहीं किया,
पाबन्दी सबपर डाली खुद ऐस किया ऐयाशी की,
तेरी पीढ़ी ने ही आंदोलन का बीड़ा उठा रखा,
कसम बताओ बोहोत उम्मीद है तेरी पीढ़ी से मुझको,
मुझे पता है जान लगाता है सबपर 
इसीलिए तू सबसे प्यारा है मुझको,
नानी ने दोनों गाले पुचकारे थी,
मैं भी प्यार से उनसे लिपट गया,
सोच है हूँ के मैंने कितना कुछ देखा है अबतक,
सोच रहा हूँ के अब तक कितना देखा जाना बाकि है,
मेरी आँखों ने जगहों को बदल-बदल कर देखा है,
नानी की आँखों ने एक ही जगह को बदलते देख है।

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