युद्ध है समक्ष तो, विपक्ष और पक्ष के,
प्रत्येक दक्ष का भी धीर क्क्ष डोलने लगा
और देख दशा द्रोपदी की वीर पुत्र पांडवो के,
धमनियों में बूँद-बूँद रक्त खोलने लगा
पांचजन्य की सुनी जो गूंज ले भुजाओ में,
हर एक वीर अस्त्र और शस्त्र तौलने लगा
धड़ गिरे विशाल हो बेहाल देख के कपाल,
काल भी तो जय-जय महाकाल बोलने लगा
हे शंभू ,कहो !
विशाल समर में जीवन का उत्थान निकट है,
युद्ध हुआ तो अधर्म के अंधियारे का अपमान निकट है
कटे शीश और कटी भुजाएं, फिर निश्चित ही बिखरेगी,
नए भोर की सूर्य किरण फिर, श्रोणित पर ही पसरेगी
रण-भूमि में वीरों की गर्जन से अंबर डोलेगा,
कटते धड़ हर एक मानो जय-जय शंभू की बोलेगा
गुरुजन के आशीषो का उत्तर, तलवारो से होगा,
इंद्र विजयी वीरों का भी परिचय संहारो से होगा
बाण चलाये जायेगे फिर मेघ-मल्हार बुलाने को,
शैया सजती जायेगी, वीरों को गले लगाने को
निर्दोष प्रजा पर मृत्यु के आलिंगन का छाया संकट है,
हे नाथ ! कहो विशाल समर में जीवन का उत्थान निकट है
वायु प्राण लिये उड़ती है, विजय का ध्वज लेहराने को,
रक्त उमड़ता आतुर है, छाती फट बाहार आने को
धूल उड़ी जब अश्व टाप से, स्वयं सूर्य भी अस्त हुये,
रणबाँकुर सब के सब देख, विशाल समर नत्मस्त हुये
दृश्य देख विध्वंश का धरती भय से थर्राती है,
स्वयं काल की काया भी यह चित्र देख घबराती है
टाले ना टल पाये अब ये महायुद्ध ये सजा विकट है,
हे नाथ ! कहो विशाल समर में जीवन का उत्थान निकट है
बांह फैलाये धर्म खड़ा है, आतुर गले लगाने को,
शीश पड़े धड़ भाग रहे है, चरणों में गिर जाने को
सत्य ढिगेगा किंतू ईश्वर, आश्वशत उसे फिर कर देंगे,
नवचेतन के अंकुर से तन और मन फिर वे भर देंगे
दिखा के उजला स्वच्छ सवेरा, शोभित हर काया होगी,
दान धर्म कर्तव्य मनुष्य की सर्वप्रथम माया होगी
संकट के सागर में दिखता युद्ध शेष, अब एक ही तट है,
हे पार्थ ! रहो निश्चिंत ही अब अंधियारे का अपमान निकट है
पाप यदि ना बढ़ता, तो ये युद्ध कदाचित ना होता,
धर्मराज भी स्वयं कभी, अपने संयम को ना खोता
इक नारी के खुले केश, क्या स्वयं तुम्हे भी याद नहीं?
माधव के मैत्री संदेशे की कोई औकात नहीं
अधर्म विरोधी भरी सभा में कोई तो बोला होता,
तलवारे सजी मयानो में, अरे खून कभी खौला होता
द्युत युद्ध में हुये कपट का, बोलो बदला लेगा कौन?
और वीर समय पर ना बोले, तो तुम भी अब हो जाओ मौन
संकट के सागर में दिखता युद्ध शेष, अब एक ही तट है
पर पार्थ, रहो निश्चिंत ही अब अंधियारे का अपमान निकट है
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