"हास्य की भाषा नही लिखी है,
नाही गजल सुनाता हूं,
कविता नही है आती लिखनी,
चीखे लिखते जाता हूं,
देश मेरा जल रहा है,
आग लगी है सीने में,
हुक्मराह सब व्यस्त दिखे है,
खून गरीब का पीने में,
तो राम मंदिर या बाबरी का पक्ष नही में लाया हूं,
घायल भारत चीख रहा है, चीख सुनाने आया हूं"
फिर पिता को ठेश है पहुँची,
फिर बेटा नादान हुआ है,
फिर फिरौन ने सीमा लाँघि,
भस्मासुर को अभिमान हुआ,
तो फिरओनियत को फिर मिटने,
मूसा ह्रदय छेत्र खुले,
और भस्मासुर मगरूर हुआ है,
शिव का तिज़ा नेत्र खुले।।
अहसास नहीं है भारत को,
जज़्बात कैद है पाकिस्तान में
दो बच्चो का, सिर सहलाते,
दो हाथ कैद है पाकिस्तान में,
जल सेना के स्वाभिमान का,
गुमान कैद है पाकिस्तान में,
अब्दुल कलम आज़ाद का,
हिन्दोस्तान कैद है पाकिस्तान में,
एक माँ की मुन्तज़िर आँख का,
नूर कैद है पाकिस्तान में,
सिर्फ कुलभूषण नहीं,
किसी मांग का सिन्दूर कैद है पाकिस्तान मे।।
शांति श्वेत परचम अपना देखो,
गिरा यूँ भू पर है,
अब तो जागो संसद वालो,
पानी सर के ऊपर है,
या दुश्मन रक्त से स्नान करो,
या शर्म करो, या विषपान करो,
कुलभूषण को रिहा कराओ,
या जुंग का एलान करो ।।
भूल गए किरपान हमारी,
कितनी भूमि छोड़ी है,
LOC के आगे चलकर,
सेना वापस मोड़ी है,
हर युद्ध हराया है तुमको,
छमादान तुम भूल गए,
भुट्टो के फहले हाथों को,
भिक्षा हमने दी है जी,
देखे को अनदेखा कर,
ज़हर की घुड़की पी है जी,
ताज धमाके जैसे,
कितने जख्मो को झेला हमने,
फिर भी मैदानों में,
क्रिकेट मैच भी खेला हमने,
कश्मीर समस्या हमने,
छाती पर ले रखी है जी,
POK नाम की दौलत,
भीख में दे रखी है जी,
अपने अग्नि शास्त्रों की भी,
चीख दबा रखी है जी,
और असवमेघ के घोड़े पर भी,
लगाम लगा रखी है जी।।
तुम भूल रहे हो शीशे से,
पत्थर नहीं तोड़े जाते,
अरे 93 हज़ार छोड़े हमने,
तुमसे एक नहीं है छोड़ा जाता,
फाँसी रुकवा ली है हमने,
हर्ष फव्वारे नहीं मिले,
पाकिस्तानी सालांख गलाने वाले,
अंगारे नहीं मिले,
वो ISI के दरबारों में तो,
हस्ता सावन आता होगा,
रणविजय मुस्कान लिए,
खिलकर रावण आता होगा,
और यहाँ एक अभागन,
रूखी रोटी सेंक रही है,
तीन दिवाली से बूढी आँखे,
राह भूषण की देख रही है।।
प्रताड़ित करने वाले सारे उससे,
बेकार समझते होंगे,
70 वर्षो के जख्मो का,
एक उपचार समझते होंगे,
सोंचते होंगे तबियत,
नासाज बनाकर छोड़ेंगे,
फिर दूजा सरबजीत ,
हेमराज बनाकर छोड़ेंगे,
क्या सोचते है,
हसि ठिठोली वालीबाट है कुलभूषण,
भौगोलिक फुटपाथों का लाचार,
अनाथ है कुलभूषण,
अरे नशा उतारो पाकिस्तान का,
मदमस्त होकर ऐंठा है,
अनाथ नहीं है कुलभूषण ,
वो भारत माँ का बेटा है।।
ऐसा न हो माँ सर पर,
कोई विवाद करने निकल पड़े,
काली का वो रुप धरे,
तो खप्पर भरने निकल पड़े,
ऐसा न हो की जान-गण-मन,
गूंजे कराची के दरबारों में,
और तिरंगा लेहरा दे हम,
रावलपिंडी के चौबारों में,
फोछ दो उस माँ के आशु,
या इमरान तलाक़ प्रस्थान करो,
कुलभूषण को रिहा कराओ,
या जंग का ऐलान करो।।
1 Comments
मुझे क्या आप 26 जनवरी पे कोई कविता मिल सकती है
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